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आ नो॒ विश्वा॑न्यश्विना ध॒त्तं राधां॒स्यह्र॑या । कृ॒तं न॑ ऋ॒त्विया॑वतो॒ मा नो॑ रीरधतं नि॒दे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā no viśvāny aśvinā dhattaṁ rādhāṁsy ahrayā | kṛtaṁ na ṛtviyāvato mā no rīradhataṁ nide ||

पद पाठ

आ । नः॒ । विश्वा॑नि । अ॒श्वि॒ना॒ । ध॒त्तम् । राधां॑सि । अहू॑या । कृ॒तम् । नः॒ । ऋ॒त्विय॑ऽवतः । मा । नः॒ । री॒र॒ध॒त॒म् । नि॒दे ॥ ८.८.१३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:8» मन्त्र:13 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:27» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:13


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शिव शंकर शर्मा

राजकर्मों की शिक्षा देते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे अश्वयुक्त राजा और अमात्य आप दोनों (अह्रया) अलज्जाकर अभयप्रद (विश्वानि) सर्वप्रकार (राधांसि) पूज्य, पवित्र सत्योपार्जित धन (नः) हम जीवों को (आ+धत्तम्) दीजिये और (नः) हमको (ऋत्वियावतः) ऋतु-२ में शुभकर्म करनेवाले ऋतुधर्म पालनेवाले और समयानुकूल कर्म करनेवाले (कृतम्) कीजिये। तथा (निदे) निन्दा के या निन्दक पुरुष के निकट (नः) हमको (मा+रीरधतम्) समर्पित मत कीजिये। निन्दा से या निन्दक पुरुष से हमको दूर रक्खें ॥१३॥
भावार्थभाषाः - राजा प्रजाओं को व्यापारों की स्थापना से समृद्ध, विद्याप्रचार से सर्व कर्म में कुशल और धर्म संस्कारों से धार्मिक और पवित्र बनावें ॥१३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! (नः) मुझे (विश्वानि) सब प्रकार के (अह्रया) लज्जा के अनुत्पादक (राधांसि) धनों को (आधत्तम्) दें और (नः) मुझे (ऋत्वियावतः) सब ऋतुओं में उत्पन्न होनेवाले पदार्थों से (कृतम्) युक्त करें (निदे) निन्दक के लिये (नः) मुझे (मा) मत (रीरधतम्) समर्पित करें ॥१३॥
भावार्थभाषाः - हे सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! आप हमको उत्तमोत्तम धनों के उपार्जन करने की विधि का उपदेश करें, जिससे हम धनसम्पन्न हों और आप ऐसी कृपा करें कि वेदों के ज्ञाता सत्पुरुषों से ही हमारा सम्बन्ध तथा व्यवहार हो, लम्पट, निन्दक, अनृतभाषी तथा वेदमर्यादा से च्युत पुरुषों से हमारा सम्बन्ध न हो ॥१३॥
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शिव शंकर शर्मा

राजकर्माणि शिक्षते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अश्विना=अश्विनौ ! अह्रया=अह्रयाणि=अलज्जाकराणि। ह्री लज्जायाम्। विश्वानि=सर्वाणि। राधांसि=पूज्यानि पवित्राणि=सत्येनोपार्जितानि धनानि। नोऽस्मभ्यम्। आधत्तम्=आदत्तम्। अपि च। नोऽस्मान्। ऋत्वियावतो=यमनियमादियुक्तान्। कृतम्=कुरुतम्। ऋतौ=ऋतौ भवं कर्म ऋत्वियं तद्विद्यते एषामिति ऋत्वियावन्तस्तान्। अपि च। निदे=निन्दायै निन्दकाय वा। नोऽस्मान्। मा=नहि। रीरधतम्=वशं नैष्टम् ॥१३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे अश्विनौ ! (नः) अस्मभ्यम् (विश्वानि) सर्वविधानि (अह्रया) अह्रीजनकानि (राधांसि) धनानि (आधत्तम्) प्रयच्छतम् (नः) अस्मान् (ऋत्वियावतः) सर्वर्तूत्पन्नपदार्थवतः (कृतम्) कुरुतम् (निदे) निन्दकाय (नः) अस्मान् (मा) न (रीरधतम्) समर्पयतम् ॥१३॥